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जीवन में प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी चिंता से ग्रस्त है। चिंता कई प्रकार की होती है। जीवन है तो चिंता है। प्रत्येक चिंता का कोई-ना-कोई समाधान भी अवश्य होता है, लेकिन हम अपनी समस्याओं में इतना घिरे रहते हैं कि चिंता कर-करके परेशान होते रहते हैं। चिंता के साथ बहुत बुरी बात यह है कि यह हमारी एकाग्रता की शक्ति को खत्म कर देती है और स्वस्थ आदमी को भी बीमार बना सकती है। डॉ. अलेक्सिस कैरेल ने कहा था - 'जो चिंता से लड़ना नहीं जानते, वे जवानी में ही मर जाते हैं।'
अगर आप चिंता रूपी कैंसर से बचना चाहते हैं, तो इस को अवश्य पढ़ें। इस पुस्तक में चिंता की समस्याओं का विश्लेशण कैसे करें और उन्हें कैसे सुलझायें, के व्यावहारिक जवाब दिए गए हैं। इन पर अमल करके आप न सिर्फ अपनी चिंता पर विजय पा सकते हैं, बल्कि खुश व स्वस्थ्य रहकर शांतिपूर्वक अपना जीवन भी जी सकते हैं। इस पुस्तक को पढ़े और चिंता पर विजय प्राप्त कर सुख से जीने का मूलमंत्र जानें। इससे पहले कि चिंता आपको खत्म करे, आप चिंता को खत्म कर दें...।

Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo - चिंता छोड़ो सुख से जियो (Hindi Translation of How to Stop Worrying & Start Living) 


एक युवक
एक शहर में एक बबन नाम का एक लड़का रहता था। जो एक मध्यमवर्गीय परिवार से आता था। घर में माता-पिता के अलावा और कोई नहीं था। बबन बचपन से ही होशियार, मेहनती और आज्ञाकारी था। स्कूल में क्लास टीचर का इकलौता पसंदीदा छात्र, जो घर में भी अपने माता-पिता की बात अच्छी तरह से मानता है, स्कूल में होशियार है, हमेशा अच्छे अंकों से पास होता है। बबन अब बड़ा हो गया था। और स्कूल से कॉलेज में जाने वाला था। स्कूल से कॉलेज में प्रवेश करने के कुछ दिनों में ही बबन के स्वभाव में बहुत ही बदलाव आ गया था।

स्कूल में अच्छे अंकों से पास होने वाला और माता-पिता की बातों को मानने वाला बबन अब ना तो मां-बाप की सुनता था, और ना ही अच्छी तरह से पढ़ाई करता था। उलट मां-बाप से झूठ बोलकर पैसे ले लिया करता था। अचानक बबन में हुए ये बदलाव देखकर हर कोई अचंभित हुआ कि, यह लड़का इतना बदल कैसे सकता है। कोई कोई जान गए थे कि, वह बुरे बच्चों की संगति में है इसलिए, जो बिना वजह पैसे बर्बाद करते हैं, फिल्मों में जाना और धूम्रपान करना उनकी आदत थी।


बबन का यह स्वभाव देखकर उनके माता-पिता ने उसे समझाने की कोशिश की कि तुम बुरे बच्चों के संग हो, उनके पदचिन्हों पर चलकर अपना जीवन बर्बाद मत करो, तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। तो वह उल्टा कहता, मैं अब बड़ा हो गया हूं। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। मैं उन बच्चों के साथ रहता हूं, लेकिन मैं उन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देता। ऐसा कहकर माता-पिता की बातों को टाल देता था।


ऐसे ही कई दिन बीत गए और उसके बाद बबन की परीक्षा के दिन आ गए और उसने पढ़ना शुरू कर दिया लेकिन वह उतना नहीं पढ़ पाता था, जितना वह पहले पढ़ाई करता था। परीक्षा सिरपर थी, और उसने उसी अध्ययन में परीक्षा दी। लेकिन जब परीक्षा का परिणाम आया तो वह एक विषय में अनुत्तीर्ण हो गया था।


हमेशा अच्छे अंकों से पास होने वाला बबन बहुत दुखी था कि, वह आज एक विषय में फेल हो गया, वह एक तरह से चौंक गया, उसके बाद वह अकेला रहने लगा, बहुत कम बात करने लगा, अपने अंदर ही अंदर कुछ सोचने लगा, अपना कमरा छोड़ कर यहां वहां जाना ही छोड़ दिया था। बबन को इस स्थिति में देख कर सभी ने उससे कहा कि पिछला परिणाम भूल जाओ और आगे की परीक्षाओं पर ध्यान दो, जो हुआ उसे भूल जाओ। लेकिन वह अब भी किसी की सुनने को तैयार नहीं था और खुद को दोष दे रहा था। क्योंकि इस वक्त बबन पर तनाव का असर ज्यादा था।

एक दिन उनके स्कूल के शिक्षक को (जो उसे सर्वाधिक पसंद करते थे) उनके बारे में पता चला, जिसके बाद शिक्षक ने उनसे मिलने का फैसला किया और अगले दिन उन्होंने अपने पसंदीदा छात्र बबन को उनसे मिलने के लिए अपने घर आमंत्रित किया। अगले दिन बबन अपने गुरूजी को मिलने आया। तब उनके गुरूजी बाहर आंगन में लकड़ी की आग के पास बैठे थे। उसी समय बबन भी उनके पास जाकर बैठ गया। गुरूजी ने बबन की कुछ मिनटों तक सन्नाटा रहा।

कुछ देर बाद गुरुजी ने जलती हुई आग में से एक कोयला निकाल कर जमीन पर फेंक दिया। थोड़ी देर बाद आग से जलने वाला कोयला बुझ गया। तब बबन ने गुरूजी से पूछा कि सर आपने ऐसा क्यों किया। गुरुजी ने कोयले को वापस आग में फेंक दिया और बबन से कहा, "देखो, उसी कोयले में फिर से आग लग गई।" और गर्मी भी दे रहा हैं।


इसी तरह, जब आप अपने माता-पिता की बात सुन रहे थे, पढ़ रहे थे, तो आपके परिणाम भी सही थे, लेकिन जैसे-जैसे आप बुरी संगत में गए, जैसे कोयला जमीन पर गिरा। और बुझ गया। वैसे ही अगर आप बुरी संगती में रहकर आपको लगता है की आप अपनी पढ़ाई पर ध्यान देते हैं तो यह किसी काम का नहीं है।


अगर आप अपने माता-पिता की सुनते हैं, तो आप भी उस कोयले की तरह फिर से सफल हो सकते हैं, जो फिर से जलकर उष्मा देता है। गुरुजी की इन बातों को सुनकर बबन में परिवर्तन आया और वह फिर से पहले की तरह एक अच्छा लड़का बन गया और समाज में फलने-फूलने लगा।


तो दोस्तों इस कहानी की तरह ही तनाव के वक्त हमें अपनी बातों को दोस्तों के साथ, परिवार वालों के साथ साझा करना चाहिए। ताकि हमें सही सलाह मिल सके। क्योंकि किसी की अच्छी सलाह हमें तनावमुक्त कर सकती है, जिंदगी बच्चा सकती हैं।


मनुष्य प्रकृति की एक संरचना है, जो दुख के पहाड़ को पार कर सफलता के शिखर तक पहुंच सकती है। जीवन में हमेशा आशा का दीपक जलाएं जो आपको हमेशा जीवन जीने का मार्ग देगा। अपने आस-पास के दोस्तों का ख्याल रखें, अगर आप कभी अकेलापन महसूस करते हैं, तो बेझिझक अपने दोस्तों के साथ साझा करें। ऐसा करने से निश्चित रूप से आपको अपने तनाव के स्तर को कम करने में मदद मिलेगी।

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